हाल ही में भारत में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे X (Twitter), Facebook और YouTube पर नफरत भरे भाषण और भड़काऊ कंटेंट को लेकर कई बहसें चल रही हैं। सरकार ने कई बार ऐसे कंटेंट को हटाने के लिए आदेश दिए हैं लेकिन कंपनियां बार-बार इसे 'फ्री स्पीच' का हवाला देकर नज़रअंदाज़ कर देती हैं।
पिछले सप्ताह सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सोशल मीडिया पर फैल रही हेट स्पीच देश की शांति और एकता के लिए खतरनाक है। कोर्ट ने सरकार से पूछा कि आखिर क्यों ऐसे कंटेंट पर तुरंत रोक नहीं लगाई जा रही। कई सोशल एक्टिविस्ट और आम लोग भी मानते हैं कि सोशल मीडिया पर ऐसे वीडियो और पोस्ट लाखों लोगों को गलत दिशा में ले जा सकते हैं।
दूसरी तरफ, कुछ लोग कहते हैं कि अगर सोशल मीडिया पर सख्त बैन लगाया गया तो यह अभिव्यक्ति की आज़ादी (freedom of speech) के खिलाफ होगा। उनका तर्क है कि लोग अपनी बात रखने के लिए ही सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है – क्या नफरत फैलाना भी आज़ादी की श्रेणी में आता है?
सोचने की बात यह भी है कि सोशल मीडिया कंपनियों का एल्गोरिदम ऐसा है जो विवादित और भड़काऊ कंटेंट को ज्यादा लोगों तक पहुँचाता है क्योंकि उस पर ज्यादा लाइक्स, कमेंट्स और शेयर आते हैं। इससे नफरत का बाजार बढ़ता है और समाज में दूरी भी।
हाल ही में अमेरिका, यूरोप और कई देशों ने सोशल मीडिया कंटेंट पर सख्त कानून बनाए हैं। भारत में भी IT नियमों को और मजबूत करने की बात चल रही है। सरकार चाहती है कि सोशल मीडिया कंपनियां खुद ऐसे कंटेंट को पहचानें और तुरंत हटा दें, नहीं तो उन पर जुर्माना लगे।
👉 अब सवाल आपसे है।
क्या भारत में भी सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले कंटेंट पर तुरंत बैन लगना चाहिए या इससे बोलने की आज़ादी पर असर पड़ेगा?
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