राजस्थान की राजनीति में अक्सर ये सवाल उठता रहता है कि वास्तविक ताकत किसके पास है – चुने हुए विधायक के या पूर्व विधायक के?
संगरिया विधानसभा का उदाहरण देख लीजिए।
यहाँ से कांग्रेस के अभिमन्यु पूनिया वर्तमान विधायक हैं, लेकिन राज्य में सरकार भाजपा की है। दूसरी तरफ, संगरिया के पूर्व भाजपा विधायक गुरदीप शाहपीनी आज भी जनता के बीच उतने ही सक्रिय दिख रहे हैं जितने अपने कार्यकाल में थे।
लोगों का कहना है कि –
“वर्तमान विधायक अभिमन्यु पूनिया चाहकर भी ज़्यादा काम नहीं कर पा रहे, क्योंकि राज्य में भाजपा की सरकार है। वहीं, गुरदीप शाहपीनी बिना विधायक रहते हुए भी सारे काम करवा रहे हैं।”
💡 क्या कारण है ऐसा?
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भाजपा सरकार का सपोर्ट:
सरकार उनकी पार्टी की है, इसलिए फाइलें आसानी से पास हो जाती हैं। -
लोकप्रियता और नेटवर्क:
गुरदीप शाहपीनी का लंबे समय से संगरिया में नेटवर्क रहा है। सरकारी अधिकारियों से लेकर मंत्री तक, सभी से उनका जुड़ाव है। -
वर्तमान विधायक की सीमाएं:
कांग्रेस विधायक विपक्ष में हैं, इसलिए उनके प्रस्तावों पर तुरंत काम नहीं होता। यही वजह है कि लोग सीधे पूर्व विधायक के पास पहुँच जाते हैं।
🔥 जनता में चर्चा
संगरिया में चाय की दुकानों से लेकर पंचायत तक, लोग कहते सुनाई देते हैं –
“असली विधायक तो गुरदीप शाहपीनी ही हैं, काम तो वही करवा रहे।”
लेकिन ये बात लोकतंत्र के लिए कितनी सही है? क्या जनता ने जिसे चुना, उसकी अनदेखी ठीक है? या फिर जनता को सिर्फ काम से मतलब है, चाहे कोई भी करवाए?
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संगरिया की राजनीति यह दिखाती है कि सिर्फ विधायक बनना ही ताकत नहीं देता, बल्कि पार्टी की सरकार और जनता के बीच पकड़ भी मायने रखती है।
अब देखना होगा कि अभिमन्यु पूनिया आने वाले समय में जनता का भरोसा जीत पाते हैं या गुरदीप शाहपीनी यूँ ही अपनी छवि मजबूत बनाए रखते हैं।
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