भारत में गाय को माँ का दर्जा दिया गया है। हर गाँव, हर कस्बे में गौशालाओं की भरमार है। सरकारें भी इनका प्रचार-प्रसार करती हैं और समाज के लोग भी दिल खोलकर दान देते हैं। लोग गौसेवा को पुण्य का कार्य मानते हैं। पर क्या सच में ये गौशालाएं गौसेवा कर रही हैं या ये महज कमाई का धंधा बन गई हैं?
गांवों से लेकर शहरों तक, हर जगह सुनने को मिलता है कि फलां गौशाला के अध्यक्ष ने लाखों का चंदा खा लिया। कहीं सरकारी ग्रांट का पैसा कार्यकर्ताओं की जेब में चला जाता है तो कहीं गायों को चारा तक नसीब नहीं होता।
🌾 सच्चाई क्या है?
जब आप किसी भी गौशाला में जाएंगे, तो आपको 50-100 गायें दिखेंगी। लेकिन क्या आपने कभी गौर किया कि जितना पैसा गौशाला को मिलता है, उतना खर्च भी हो रहा है या नहीं?
– कुछ जगहों पर गायों के लिए चारा नहीं होता,
– उनका इलाज समय पर नहीं होता,
– बूढ़ी और बीमार गायें बस पड़ी रहती हैं।
लोग लाखों-करोड़ों का दान देते हैं, परन्तु वह पैसा किसके पास जाता है? जवाब होगा – “गौशाला के अध्यक्ष और पधाधिकारी”। यहाँ तक कहा जाता है कि कई लोग सिर्फ इसीलिए गौशाला की कमेटी में शामिल होते हैं ताकि सरकारी ग्रांट और चंदे का पैसा खा सकें।
💰 गौशाला का पैसा जाता कहाँ है?
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गौशाला रजिस्ट्रेशन के नाम पर घूसखोरी
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चारे और भूसे की फर्जी बिलिंग
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दान में आई राशि का कोई लेखा-जोखा नहीं
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सरकारी ग्रांट सीधे खाते में आती है, खर्च का कोई प्रमाण नहीं
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बीमार गायों के इलाज के नाम पर भी भ्रष्टाचार
🕉️ क्या यह धर्म विरोध है?
गौशाला चलाना धर्म और सेवा का काम है। परंतु जब इसमें भ्रष्टाचार जुड़ जाता है तो उसका उद्देश्य खत्म हो जाता है। कुछ जगह गौशालाएं सच में बहुत अच्छा काम कर रही हैं, गायों की सेवा कर रही हैं, परंतु अधिकतर जगह हालात अलग ही दिखते हैं।
🙏 आपका क्या मानना है?
गायें तो बोल भी नहीं सकतीं, इसलिए उनके नाम पर चल रहे इस कारोबार पर कौन सवाल उठाएगा? अगर आज समाज और सरकार मिलकर इस भ्रष्टाचार पर रोक लगाए तो हर गाय को उचित देखभाल, चारा, और इलाज मिल सकता है।
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आपका क्या अनुभव है? क्या आपके इलाके में भी गौशाला सिर्फ कमाई का माध्यम बन चुकी है? नीचे कमेंट करें और अपनी आवाज़ उठाएं।
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