प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस बार ब्रिक्स सम्मेलन में एक बार फिर आतंकवाद के मुद्दे को प्रमुखता से उठाने जा रहे हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, दक्षिण अफ्रीका में हो रहे इस सम्मेलन में भारत की कोशिश रहेगी कि आतंकवाद के खिलाफ साझा घोषणापत्र में स्पष्ट और कड़े शब्दों का प्रयोग हो, जिसमें पाकिस्तान का नाम सीधे तौर पर न भी हो लेकिन इशारा साफ हो।

ब्रिक्स सम्मेलन में आतंकवाद पर भारत का सख्त संदेश – क्या वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान को घेरा जाना चाहिए?

पिछले कुछ वर्षों से भारत ने सभी वैश्विक मंचों पर यह मुद्दा उठाया है कि आतंकवाद का समर्थन करने वाले देशों को अलग-थलग किया जाना चाहिए। इस बार भी जब पीएम मोदी ब्रिक्स नेताओं से मिलेंगे, तब पुलवामा, उरी, और हाल ही में पहलगाम जैसे आतंकी हमलों का हवाला दिया जा सकता है। भारत का मानना है कि अगर बड़े मंचों से एकजुट और स्पष्ट संदेश नहीं दिया गया तो आतंकवाद पर लगाम कसना मुश्किल होगा।

ब्रिक्स देशों – ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका – का यह समूह वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक संतुलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। हालांकि, चीन पाकिस्तान का करीबी साथी माना जाता है, ऐसे में आतंकवाद पर किसी सख्त बयान पर उसकी सहमति लेना आसान नहीं होगा। फिर भी भारत का जोर रहेगा कि आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर सभी देश सहमत हों।

यह मुद्दा सिर्फ कूटनीति तक सीमित नहीं है। भारत के आम नागरिक भी यह महसूस करते हैं कि पड़ोसी देशों से आ रहे आतंकवाद पर कड़े शब्दों और कार्रवाई की जरूरत है। कुछ लोग मानते हैं कि सख्त बयान देने से कुछ नहीं होगा, वहीं कई लोगों का मानना है कि जब तक पाकिस्तान जैसे देशों को वैश्विक मंचों पर बेनकाब नहीं किया जाएगा, तब तक बदलाव संभव नहीं।

ब्रिक्स सम्मेलन का यह घोषणापत्र इस बात का संकेत देगा कि दुनिया आतंकवाद को लेकर कितनी गंभीर है। क्या महज औपचारिक शब्द होंगे या फिर कोई ठोस रणनीति बनेगी? यह देखना बाकी है। भारत के लोग चाहते हैं कि उनके नेताओं की विदेश नीति ऐसी हो जिससे देश का सम्मान बढ़े और सुरक्षा मजबूत हो।

 

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