बाबा बागेश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने एक बार फिर अपने तीखे अंदाज़ में आलोचकों को जवाब दिया है।
हाल ही में मध्यप्रदेश के छतरपुर में बागेश्वर धाम सरकार ने अपने बयान से सभी का ध्यान खींचा। उन्होंने कहा:
“यह हमारी समझ से परे है। गांव की कहावत है कि गरीब की लुगाई, पूरे शहर की भौजाई, यही हाल हमारा है। सीधा साधा जानकर हमें इस तरीके से लोग कहते हैं, हनुमान जी की इच्छा होगी। साधु के पास कुछ होता नहीं, हमें अपनी औकात पता है। साधु समाज से लेता है, समाज को सौंप देता है, यह बुराई नहीं है।”
धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री के इस बयान के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
आखिर क्यों उन्होंने ऐसी कहावत का इस्तेमाल किया?
क्या वाकई उनके ऊपर लग रहे आरोप बेबुनियाद हैं या कुछ और चल रहा है?
🤔 क्या है मामला?
हाल ही में समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव समेत कई नेताओं और बुद्धिजीवियों ने बाबा बागेश्वर पर सवाल उठाए। उनका कहना है कि:
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धर्म के नाम पर दिखावा हो रहा है
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लोगों की आस्था से खेला जा रहा है
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राजनीतिक हित साधे जा रहे हैं
लेकिन बाबा बागेश्वर ने हर बार की तरह इस बार भी साफ कहा कि वो सिर्फ हनुमान जी की कृपा से लोगों की मदद करते हैं।
उन्होंने आलोचकों पर तंज कसते हुए कहा कि
“साधु समाज से लेता है और समाज को ही देता है। इसमें बुराई नहीं है।”
💭 लोग क्या सोचते हैं?
कुछ लोग मानते हैं कि बाबा बागेश्वर का संदेश लोगों को धर्म के प्रति जागरूक करता है, तो कुछ को इसमें दिखावा नजर आता है।
उनका कहना है कि साधु-संतों को समाज को जोड़ने का काम करना चाहिए, लेकिन जब राजनीति का रंग चढ़ता है, तब विवाद खड़े होते हैं।
🙏 आस्था बनाम आलोचना
भारत जैसे देश में जहां करोड़ों लोग भक्ति और श्रद्धा से जुड़े हैं, वहां बाबा बागेश्वर जैसे कथावाचकों का प्रभाव बड़ा होता है।
लेकिन हर प्रभावशाली व्यक्ति के साथ आलोचना भी जुड़ी रहती है।
बाबा बागेश्वर का यह जवाब दर्शाता है कि वे आलोचनाओं को ज्यादा महत्व नहीं देते।
वे मानते हैं कि हनुमान जी की कृपा से ही सब कुछ संभव है।
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बाबा बागेश्वर के ताजा बयान ने एक बार फिर साबित किया कि वो जो कहते हैं, बेझिझक कहते हैं।
उनकी बातें उनके भक्तों को प्रेरित करती हैं, वहीं आलोचकों को सोचने पर मजबूर करती हैं।
आस्था और आलोचना के इस सफर में, सच क्या है, ये तो समय ही बताएगा।
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